• Shree Vidya Sadhana Peeth, Varanasi,U.P
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  • || सावधान! श्री विद्या साधना पीठ, नगवां, वाराणसी की कोई शाखा नहीं है

श्रीविद्या साधना पीठ, वाराणसी

श्रीदत्तात्रेयानंदनाथ जी (सीताराम कविराज) ने सन 1993 ई0 में श्रीविद्या मंत्रयोग द्वारा भगवती पराम्बा ललितामहात्रिपुरसुन्दरी की उपासना तथा श्रीविद्या परम्परा के संरक्षण, संवर्धन एवम प्रसार के लिए संस्थापित की गई है। भारतवर्ष में अपने प्रकार की अद्वितीय यह संस्था स्वामी करपात्री जी महाराज के द्वारा उत्तर भारत में पुनर्जीवित की गई इस परंपरा को अग्रसर करने के लिए प्रतिश्रुत है।

संस्था का भवन
पांच अंगों या साधना पीठ की परिकल्पना विभागों के रूप में की गई है। यह अंग विभाग या विभाग निम्नलिखित हैं --

वाराणसी में नगवां क्षेत्र में गंगाजी के सुरम्य तट के निकट ही अत्यंत प्रशस्त और शांत स्थल में नवनिर्मित चार मंजिल के भवन में यह आश्रम प्रतिष्ठित है। इसमें दो विशाल सभा कक्ष एवं तेरह कक्ष हैं, जिनमें यज्ञमंडप, अर्चनकक्ष, ग्रंथालय, शिक्षा एवं अनुसंधान प्रकाशन विभाग एवं अतिथि कक्ष आदि स्थित है। भवन की विशाल छत पर साधक संध्योपासना, जप आदि कर सकते हैं। यहां के सामने भगवती गंगा और काशी के देवालयों एवं घाटों का दर्शन होता रहता है। भवन के आस-पास सुरम्य उद्यान एवं विद्यालय जैसी संस्थाएं जिनसे अनुकूल वातावरण का निर्माण होता है।

श्रीविद्या साधना पीठ के अंग विभाग एवं गतिविधियां

1.उपासना विभाग,
2. अनुसंधान एवं शिक्षण विभाग (अध्यापन एवं छात्रावास सहित),
3. प्रकाशन विभाग,
4. ग्रंथालय,
5. साधकावास एवं अतिथिकक्ष।
साधना पीठ में निगमागम शास्त्रों द्वारा विहित उपासना यथाविधि नियमित रूप से संपन्न होती है। दीक्षित साधक-साधिकायें पारंपरिक आचार्य के निर्देशन में यह साधना संपन्न कर रहे हैं। शिक्षण विभाग में छात्रों को सुयोग्य विद्वानों द्वारा शास्त्र का अध्ययन कराया जाता है और उन्हें हर आगमों का सामान्य रूप से तथा श्रीविद्या का विशेष रूप से प्रशिक्षण दिया जाता है। प्रकाशन विभाग द्वारा श्रीविद्या के अनेक ग्रंथों का प्रकाशन किया गया है, जिनमें श्रीविद्यारत्नाकर, श्रीविद्यावरिवस्या, भुवनेश्वरीवरिवस्या एवम गणपतिवरिवस्या प्रमुख हैं। कई आगम शास्त्र के दार्शिक ग्रंथों का भी हिंदी अनुवाद किया गया है जो संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय द्वारा प्रकाशित हुआ। साधना पीठ में आगम के ग्रंथों का एक पुस्तकालय भी स्थापित किया गया जो निरंतर बढ़ रहा है। आशा है, आगामी वर्षों में इसमें आगम पर देश और विदेशों में प्रकाशित

विपुल सामग्री उपलब्ध करा दी जाएगी तथा आगम-तंत्र की पांडुलिपियों का संग्रह आरंभ कर एक पांडुलिपि संग्रहालय स्थापित कर अप्रकाशित ग्रंथों का प्रकाशन भी आरंभ किया जाएगा। साधना पीठ अतिथि गृह में देश-विदेश के साधक-साधिका एवं आगंतुक अतिथियों की आवश्यकतानुसार रहने की भी व्यवस्था है। इस प्रकार साधना पीठ जो कि एक विधिवत पंजीकृत संस्था है, सक्रिय है और महत्वपूर्ण कार्य कर रही है। उपर्युक्त नियमित कार्यक्रमों के अतिरिक्त साधना पीठ में नियमित रुप से श्रीललिता सहस्रार्चन एवं लक्षार्चन संपन्न होता रहता है। प्रतिदिन महागणपति यांत्रिकी अर्चना होती है एवं पर्वों पर सहस्रमोदकार्चन संपन्न होता है। साधनापीठ ने काशी, प्रयाग, मुंबई, कामाख्या, विंध्याचल तथा पुनः काशी में विगत सात-आठ वर्षों में श्रीललिता कोटिअर्चन संपन्न किया गया है।

भावी कार्यक्रम

शिक्षण - साधना पीठ में इस समय 10 छात्र भोजन एवं आवास की सुविधा के साथ निःशुल्क शिक्षण एवं साधना का प्रशिक्षण प्राप्त कर रहे हैं। आगामी वर्ष में यह छात्र संख्या दूनी कर उपर्युक्त सुविधाओं के साथ ही नियमित छात्रवृत्ति एवं छात्रों की शिक्षा पूरी होने पर उनके नाम जमा की गई एक निश्चित धनराशि देने का भी प्रावधान किया जाएगा, ताकि शिक्षा की समाप्ति होने पर उन्हें भावी जीवन आरंभ करने के लिए कुछ आवश्यक विधि सहायता उपलब्ध हो सके।

अनुसंधान एवं प्रकाशन - साधना पीठ अपने अनुसंधान एवं प्रकाशन के कार्यक्रम का विस्तार करेगा और श्री विद्या के विभिन्न क्षेत्रों में तथा सामान्यतः आगमों पर व्यवस्थित रूप से अनुसंधान कार्य किया किया जा सकेगा ताकि श्री विद्या के रहस्य को प्रामाणिक रूप और शास्त्र विहित मर्यादा में प्रकाशित किया जा सके।

साधना - साधना के क्षेत्र में भी देश और विदेश के जिज्ञासु साधकों को समुचित निर्देश और प्रशिक्षण प्रदान करने के लिए आवश्यक तंत्र का विस्तार किया जाएगा सौभाग्य से श्री विद्या साधना पीठ में आचार्य दत्तात्रेयानंदनाथजी महाराज का सतत अनुग्रह और मार्गदर्शन उपलब्ध है जन सामान्य इससे अधिकाधिक लाभान्वित हो |

संस्था की वर्तमान संरचना श्रीविद्या साधना पीठ, वाराणसी विधिवत, पंजीकृत न्यास के द्वारा संचालित संस्था है, जिसका नियमानुसार आय- व्यय रखकर संचालन एक विधिवत गठित न्यासी मंडल द्वारा किया जाता है।